कन्या दान वो दान है जो हर माँ बाप का एक सपना होता है। कहते हैं जो कन्या दान करता है वो अपने जीवन का सबसे बड़ा दान करता है। व्यक्ति अपनी बेटी को प्यार से और लाड से पालता पोस्ता है और फिर जब वो विवाह योग्य हो जाती है तो उसके लायक वर खोजता हैऔर जब उसे अपनी बेटी के लिए एक परफेक्ट साथी मिल जाता है तब वो उसका विवाह कर देता है। विवाह में कई रस्मे निभाई जाती है जिसमे से सबसे बड़ी रस्म होती है कन्या दान की रस्म। ये रस्म वो करना चाहता है लेकिन जब वो इस रस्म को निभाता है तब उसका दिल और आत्मा तक हिल जाती है क्योकि वो अपने दिल के टुकड़े को किसी और कोकन्या दान वो दान है जो हर माँ बाप का एक सपना होता है। कहते हैं जो कन्या दान करता है वो अपने जीवन का सबसे बड़ा दान करता है। व्यक्ति अपनी बेटी को प्यार से और लाड से पालता पोस्ता है और फिर जब वो विवाह योग्य हो जाती है तो उसके लायक वर खोजता हैऔर जब उसे अपनी बेटी के लिए एक परफेक्ट साथी मिल जाता है तब वो उसका विवाह कर देता है। विवाह में कई रस्मे निभाई जाती है जिसमे से सबसे बड़ी रस्म होती है कन्या दान की रस्म। ये रस्म वो करना चाहता है लेकिन जब वो इस रस्म को निभाता है तब उसका दिल और आत्मा तक हिल जाती है क्योकि वो अपने दिल के टुकड़े को किसी और को सौप रहा होता है। जब माता पिता अपनी बेटी का हाथ वर के हाथ में रखकर कन्या दान कर रहे होते हैं तब वो वर से ये वचन मांगते हैं कि वो हमेशा उनकी बेटी का ध्यान रखेगा, उसकी रक्षा करेगा और उसका हमेशा साथ देगा। इस रस्म के बाद वो बेटी की ज़िम्मेदारी वर को सौप देता है और बेटी को एक नए जीवन में खुशहाल जीवन जीने के लिए भेजता है।
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कई लोग कन्या दान को गलत तरीके से ले लेते हैं। इसका सही अर्थ और मायने श्री कृष्ण ने समझाए थे।
कथानुसार जब कृष्ण जी ने सुभद्रा का गन्धर्व विवाह कराया तो बलराम जी इस विवाह का विरोध करते हुए कहा था कि ये विवाह पूर्ण नही है क्योकि इसमें इस विवाह में सुभद्रा का कन्या दान नही किया गया। उनकी इस बात का जवाब देते हुए श्री कृष्ण कहते हैं कि ‘प्रदान मपी कन्याया: पशुवत को नुमन्यते?’वो बलराम जी को कहते हैं कि कन्या कोई पशु नही है जिसका दान किया जाए। कन्या दान का अर्थ कन्या का दान नही बल्कि कन्या का प्रदान होता है। शादी के समय पिता कन्या दान करते हुए कहते हैं कि अब हम मेरे बेटी का पालन पोषण मैंने किया और उसकी हर जरुरत का ख्याल मैंने रखा और अब ये जिम्मेदारी तुम्हारी है। मैं आज के बाद ये जिम्मेदारी तुझे देता हूँ। इस रस्म में वर कन्या की ज़िम्मेदारी पूरे मन से स्वीकार करता है और बेटी के पिता को वचन देता है कि आज के बाद से आपकी बेटी की खुशियों की जिम्मेदारी मेरी है।
इस रस्म का ये मतलब कतई नही होता है कि कन्या दान करने के बाद बेटी के माता पिता का बेटी पर कोई अधिकार नही होता है। इस रस्म में बेटी की ज़िम्मेदारी पिता वर को सौंपता है और वर उसे अपना दायित्व मानकर ग्रहण करता है। दान तो सिर्फ चीजो का होता है इन्सान का नही। परमात्मा द्वारा दी जाने वाली सबसे प्यारी और खूबसूरत सौगात होती है बेटी ।