INR (₹)
India Rupee
$
United States Dollar

कन्यादान का सही अर्थ क्या है और कैसी शुरू हुई ये प्रथा

Created by Asttrolok in Astrology 30 Aug 2023
Share
Views: 1832
कन्यादान का सही अर्थ क्या है और कैसी शुरू हुई ये प्रथा
कन्या दान वो दान है जो हर माँ बाप का एक सपना होता है। कहते हैं जो कन्या दान करता है वो अपने जीवन का सबसे बड़ा दान करता है। व्यक्ति अपनी बेटी को प्यार से और लाड से पालता पोस्ता है और फिर जब वो विवाह योग्य हो जाती है तो उसके लायक वर खोजता हैऔर जब उसे अपनी बेटी के लिए एक परफेक्ट साथी मिल जाता है तब वो उसका विवाह कर देता है। विवाह में कई रस्मे निभाई जाती है जिसमे से सबसे बड़ी रस्म होती है कन्या दान की रस्म। ये रस्म वो करना चाहता है लेकिन जब वो इस रस्म को निभाता है तब उसका दिल और आत्मा तक हिल जाती है क्योकि वो अपने दिल के टुकड़े को किसी और को सौप रहा होता है। जब माता पिता अपनी बेटी का हाथ वर के हाथ में रखकर कन्या दान कर रहे होते हैं तब वो वर से ये वचन मांगते हैं कि वो हमेशा उनकी बेटी का ध्यान रखेगा, उसकी रक्षा करेगा और उसका हमेशा साथ देगा। इस रस्म के बाद वो बेटी की ज़िम्मेदारी वर को सौप देता है और बेटी को एक नए जीवन में खुशहाल जीवन जीने के लिए भेजता है।

क्या आप ऑनलाइन सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषी की तलाश कर रहे हैं? हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषी द्वारा ज्योतिष परामर्श के लिए अभी संपर्क करें।

कई लोग कन्या दान को गलत तरीके से ले लेते हैं। इसका सही अर्थ और मायने श्री कृष्ण ने समझाए थे।

कथानुसार जब कृष्ण जी ने सुभद्रा का गन्धर्व विवाह कराया तो बलराम जी इस विवाह का विरोध करते हुए कहा था कि ये विवाह पूर्ण नही है क्योकि इसमें इस विवाह में सुभद्रा का कन्या दान नही किया गया। उनकी इस बात का जवाब देते हुए श्री कृष्ण कहते हैं कि ‘प्रदान मपी कन्याया: पशुवत को नुमन्यते?’वो बलराम जी को कहते हैं कि कन्या कोई पशु नही है जिसका दान किया जाए। कन्या दान का अर्थ कन्या का दान नही बल्कि कन्या का प्रदान होता है। शादी के समय पिता कन्या दान करते हुए कहते हैं कि अब हम मेरे बेटी का पालन पोषण मैंने किया और उसकी हर जरुरत का ख्याल मैंने रखा और अब ये जिम्मेदारी तुम्हारी है। मैं आज के बाद ये जिम्मेदारी तुझे देता हूँ। इस रस्म में वर कन्या की ज़िम्मेदारी पूरे मन से स्वीकार करता है और बेटी के पिता को वचन देता है कि आज के बाद से आपकी बेटी की खुशियों की जिम्मेदारी मेरी है।

इस रस्म का ये मतलब कतई नही होता है कि कन्या दान करने के बाद बेटी के माता पिता का बेटी पर कोई अधिकार नही होता है। इस रस्म में बेटी की ज़िम्मेदारी पिता वर को सौंपता है और वर उसे अपना दायित्व मानकर ग्रहण करता है। दान तो सिर्फ चीजो का होता है इन्सान का नही। परमात्मा द्वारा दी जाने वाली सबसे  प्यारी और खूबसूरत सौगात होती है बेटी ।

कन्यादान की प्रथा कैसे शुरू हुई


धर्म शास्त्रों अनुसार प्रजापति दक्ष ने सर्वप्रथम अपनी 27 बेटियों का कन्या दान करते हुए उनका विवाह चन्द्र देव से कराया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि सम्पूर्ण सृष्टि का संचालन अच्छे से और सही तरीके से हो पाए। उनकी ये पुत्रियाँ 27 नक्षत्र मानी गयी हैं। इस दिन के बाद से ही कन्यादान की प्रथा की शुरुवात हुई।

यह भी पढ़ें:- जाने ज्योतिष अनुसार आपकी आँखों का रंग क्या कहता है?

सर्वश्रेष्ठ दान क्या है?


हिन्दू धर्म में कन्या दान को सर्वश्रेष्ठ और महादान माना जाता है। ये दान सर्वोपरी है क्योकि इसमें उस पुत्री का प्रदान होता है जो उसकी आत्मा से जुडी है और जो उसे अपने प्राणों से भी प्रिय है। जब माता पिता ये रस्म निभाते हैं तब उनके दिल के हज़ार टुकड़े हो जाते हैं लेकिन फिर भी वो अपनी बेटी के सुखी जीवन के लिए और उसका संसार बसाने के लिए उसे वर के हाथो सौप देते हैं। माता पिता द्वारा किया जाने वाला सबसे बड़ा त्याग है जिसकी तुलना में हर दूसरा दान कुछ नही है। विवाह के बाद जब वो अपनी बेटी को उसके नए संसार में सुखी देखता है तो वो संसार का सबसे सुखी इंसान बन जाता है । उसके दिल के टुकड़ा को खुश देखकर मिलने वाली ख़ुशी उसके दिल और उसकी आत्मा को शांति और सुकून देती है। अपनी बेटी को खुश देखकर वो अपने आप को बहुत भाग्यवान समझते हैं लेकिन यदि उनकी बेटी उसके नए संसार में परेशान या दुखी हो रही है तो वो माता पिता के लिए सबसे दर्दनाक होता है।
कन्यादान कैसे किया जाता है?

शास्त्रों अनुसार जब माता पिता विधि विधान से अपनी बेटी का कन्यादान करते हैं तब उन्हें और उनके परिवार को सौभाग्य प्राप्त होता है। जब पंडित कन्या के माता को कन्या दान के लिए बुलाते हैं तो सबसे पहले बेटी अपने पिता की हथेली के ऊपर अपनी हथेली रखती है और वर अपनी हथेली अपने ससुर की हथेली के नीचे रखता है। अब पंडित जी जल डालते हैं जो बेटी की हथेली से होता हुआ पिता की हथेली में आता है और फिर वर की हथेली में जाता है। इस रस्म में बाद वो बेटी और दामाद को हमेशा सुखी रहने का आशीर्वाद देते हैं। ये रस्म करते हुए माता पिता के साथ साथ परिवार के सभी लोग भावुक हो जाते हैं।

क्या अपने भी भी कन्यादान किया है?

सर्वश्रेष्ठ वैदिक विज्ञान संस्थान (एस्ट्रोलोक) से ज्योतिष ऑनलाइन सीखें जहाँ आप विश्व प्रसिद्ध ज्योतिषी श्री आलोक खंडेलवाल से ज्योतिष सीख सकते हैं। इसके अलावा वास्तु पाठ्यक्रम, अंकशास्त्र पाठ्यक्रम, हस्तरेखा पढ़ना, आयुर्वेदिक ज्योतिष, और बहुत कुछ प्राप्त करें। निःशुल्क ऑनलाइन ज्योतिष पाठ्यक्रम उपलब्ध है।

यह भी पढ़ें:- नामकरण अंक ज्योतिष क्या है और क्या है इसका अर्थ – पार्ट 1

Comments (0)

Asttrolok

Asttrolok

Admin

Consultants

Ruchira agrwal

Ruchira agrwal

Astrology Hindi, English Exp: 5+ Year
KVN Swamy

KVN Swamy

Astrology Hindi, English Exp: 5+ Year
Tejal Shah

Tejal Shah

Anju Sharma

Anju Sharma

Astrology Hindi, English Exp: 8+ Year
Dr. Sagar Patwardhan

Dr. Sagar Patwardhan

Palmistry Expert
Priyank Limbachiya

Priyank Limbachiya

Astrology Hindi, English Exp: 4+ Year
Neetu Singhal

Neetu Singhal

Astrology Hindi, English Exp: 3+ Year
Yogesh Pratap Singh

Yogesh Pratap Singh

Astrology Hindi, English Exp: 4+ Year

Share

Share this post with others

GDPR

When you visit any of our websites, it may store or retrieve information on your browser, mostly in the form of cookies. This information might be about you, your preferences or your device and is mostly used to make the site work as you expect it to. The information does not usually directly identify you, but it can give you a more personalized web experience. Because we respect your right to privacy, you can choose not to allow some types of cookies. Click on the different category headings to find out more and manage your preferences. Please note, that blocking some types of cookies may impact your experience of the site and the services we are able to offer.