क्या आपने कभी सोचा है कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्या है ? ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है क्योंकि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण हमारा जीवन ही है और जीवन तभी तक है जब तक हमारे अंदर प्राण वायु है । अब सवाल उठता है कि ये प्राण वायु होती क्या है ? क्या ये घटती बढ़ती है ? अगर घटती है तो इसे कैसे बढ़ाया जा सकता है ? आज के लेख में हमें प्राण वायु से जुड़े सभी सवालों का उत्तर मिलने वाला है ।
आयुर्वेद खुद को स्वस्थ रखने का सबसे अच्छा तरीका है। हमारे आयुर्वेद विशेषज्ञों से सलाह लें और अपनी समस्याओं का बेहतर समाधान जानें।
क्या आप ज्योतिष कक्षाएं ऑनलाइन खोज रहे हैं? क्या आप ज्योतिष सीखना चाहते हैं? एस्ट्रोलोक में आप पेशेवर ज्योतिषियों द्वारा ज्योतिष के उन्नत पाठ्यक्रम, वास्तु शास्त्र, हस्तरेखा पढ़ना, अंकशास्त्र पाठ्यक्रम ऑनलाइन सीख सकते हैं। हमारे पास सबसे अच्छे ज्योतिषी हैं जो आपको ज्योतिष ऑनलाइन चरण दर चरण सीखने में मदद करेंगे। श्री आलोक खंडेलवाल वैदिक ज्योतिष संस्थान (एस्ट्रोलोक) में प्रमुख ज्योतिषी हैं जो आपको ज्योतिष की मूल बातें सिखाएंगे। निःशुल्क ज्योतिष पाठ्यक्रम के लिए अभी नामांकन करें।
प्राण वायु के विषय में जानने के लिए हमें शरीर के दोषों को संक्षेप में समझना होगा । हमारे शरीर में तीन प्रकार के दोष होते हैं - वात दोष , पित्त दोष व कफ दोष । तीनों दोषों के बारे में विस्तार से चर्चा हम अपने पिछले लेखों में कर चुके हैं । जिसमें हमने यह भी जाना था कि वात दोष पंचतत्वों में से दो तत्वों वायु तत्व व आकाश तत्व से मिलकर बना है । वात दोष पाँच प्रकार के होते हैं -
आयुर्वेद में ऐसा कहा गया है कि जिसके ऊपर हमारा पूरा जीवन निर्भर है वह हमारी प्राण वायु है । शरीर में प्राण वायु जल तत्व व वायु तत्व से मिलकर बनती है । इन दोनों तत्वों में एक भी तत्व अगर शरीर में असंतुलित हो जाए तो वहीं से समस्या प्रारंभ होने लगती है । वायु तत्व के बढ़ने से शरीर में सूखापन बढ़ जाता है तो वहीं जल तत्व के बढ़ने से गीली खांसी जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं । कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि शरीर में जल तत्व व वायु तत्व का बेहतर संतुलन ही प्राण वायु है ।
आयुर्वेद के अनुसार प्राण वायु हमारे सम्पूर्ण शरीर को नियंत्रित करती है। हमारे शरीर की छोटी से छोटी कोशिका अगर सही ढंग से कार्य कर रही है तो उसके पीछे प्राण वायु का योगदान है । शरीर में प्राण वायु का केंद्र हृदय व पेट के भाग को माना गया है ।
प्राण वायु शरीर में सबसे महत्वपूर्ण कार्य करती है । प्राण वायु की वजह से हम सांस ले पाते हैं । इसके अलावा शरीर के हर भाग में ऑक्सीजन का संचार करना भी प्राण वायु का कार्य होता है । साथ ही शरीर की ज्ञानेन्द्रियों का नियंत्रण भी प्राण वायु के हाथ में होता है । हम जो भी देखते हैं , सुनते हैं व उस पर विचार करना व अंतिम निर्णय लेने में प्राण वायु हमारी मदद करती है । यह भी पढ़ें:- पित्त दोष से होने वाली समस्याएं व उसके समाधान !
आयुर्वेद में प्राण वायु के बिगड़ने का सबसे प्रमुख कारण सूखेपन को माना गया है। वायु तत्व के बढ़ जाने से शरीर में सूखापन देखने को मिलता है । जब वायु तत्व बढ़ जाता है तो इसका सीधा अर्थ है जल तत्व के साथ उसका संतुलन बिगड़ जाता है ,जिससे प्राण वायु भी बिगड़ जाती है । प्राण वायु बिगड़ने का दूसरा कारण होता है जब हम शरीर को बेवजह अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करते हैं । जैसे सही समय पर खाना ना खाना , सही समय पर ना सोना , सही समय पर शौच ना जाना या फिर बहुत अधिक खाना खा लेना , बहुत अधिक सोना इत्यादि ।
जब हमें सामान्य तरीके से साँस लेने में तकलीफ होने लगे तो यह प्राण वायु के कम होने या असंतुलित होने का लक्षण है । साँस लेने के लिए बहुत जोर लगाना ,साँस लेते हुए आवाज आना , यह सब प्राण वायु कम होने के संकेत है।
प्राण वायु बढ़ाने के लिए आयुर्वेद में कुछ सरल उपाय बताए गए हैं । जिसमें प्रतिदिन व्यायाम करना , साँस से जुड़े हुए प्राणायाम करना , सुबह गुनगुने पानी का सेवन करना आदि उपाय शामिल हैं । इसके अलावा शरीर पर तेल की मालिश करें जिससे सूखेपन की समस्या ना होने पाए । इसके अलावा आप आयुर्वेद विशेषज्ञ से परामर्श करके आयुर्वेदिक औषधियाँ ले सकते हैं ।
यह भी पढ़ें:- सभी रोगों में काम आने वाले औषधीय पौधे के बारे में जानिए !