Views: 1949
अभी तक हम वास्तु शास्त्र से जुड़े कई महत्वपूर्ण विषयों पर बात चुके हैं । उसी क्रम में हम आज वास्तु शास्त्र के एक और महत्वपूर्ण विषय पर बात करने जा रहे हैं और वो विषय है - घर का स्नानगृह ।
घर बनवाते समय हम प्रायः सभी दरवाजों ,कमरों या रसोईघर के वास्तु का तो ध्यान रखते हैं किन्तु स्नानगृह के निर्माण के समय कम ही लोग वास्तु का ध्यान रखते हैं । आज के लेख में हम जानेंगे कि वास्तु शास्त्र में घर के स्नानगृह के लिए सबसे शुभ दिशा कौन सी बताई गई है ? साथ ही यह भी जानेंगे कि अलग अलग दिशाओं में बना स्नानगृह घर के सदस्यों को किस तरह से प्रभावित करता है ?
जानिए वास्तु शास्त्र घर में सकारात्मक ऊर्जा, समृद्धि और खुशियां लाने में कैसे मददगार है। हमारे
वास्तु विशेषज्ञ मोनिका खंडेलवाल द्वारा ऑनलाइन वास्तु परामर्श प्राप्त करें और अपने घर या कार्यालय के लिए सर्वोत्तम वास्तु सलाह प्राप्त करें।
क्या आप भारत में ज्योतिष सीखने के इच्छुक हैं?
एस्ट्रोलोक (सर्वश्रेष्ठ वैदिक विज्ञान संस्थान) आपके लिए शुरुआत करने के लिए सबसे अच्छी जगह है।
मुफ्त ज्योतिष पाठ्यक्रम ऑनलाइन आपको ज्योतिष के मूल सिद्धांतों और भविष्य की भविष्यवाणी करने के लिए ज्योतिष का उपयोग करने के तरीके के बारे में सिखाएगा। इसके अतिरिक्त, वास्तु पाठ्यक्रम, अंकशास्त्र पाठ्यक्रम, हस्तरेखा पाठ्यक्रम, चिकित्सा ज्योतिष प्राप्त करें। ये ज्योतिष पाठ्यक्रम विश्व प्रसिद्ध
ज्योतिषी श्री आलोक खंडेलवाल द्वारा पढ़ाए जाते हैं।
अभी नामांकन करें।
स्नानगृह के लिए सबसे उपयुक्त दिशा -
स्नानगृह का महत्व हम सभी जानते हैं । शारीरिक सफाई के लिए प्रतिदिन स्नान करना आवश्यक होता है । शरीर स्वच्छ होता है तो हमारे मन में भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है । इसके लिए हमारे स्नानगृह का वास्तु सम्मत दिशा में होना बहुत आवश्यक है । वास्तु शास्त्र में स्नान गृह के लिए शुभ दिशा पूर्व दिशा को माना गया है । पूर्व दिशा में स्नान गृह होने से सूर्य देव की किरणें पड़ती है ,जिससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इसलिए घर में स्नान गृह का निर्माण कराते समय वास्तु शास्त्र के इस सिद्धांत का विशेष ध्यान रखना चाहिए ।
स्नानगृह में जल प्रवाह की शुभ दिशा -
स्नान गृह के अंदर जल का प्रवाह किस दिशा में होना चाहिए ,इसके बारे में भी वास्तु शास्त्र में विस्तार से बताया गया है । वास्तु शास्त्र के अनुसार स्नान गृह के अंदर जल प्रवाह की सबसे शुभ दिशा उत्तर दिशा मानी गई है । इसके अलावा पूर्व दिशा या उत्तर-पूर्व दिशा में भी जल का बहाव उत्तम माना गया है।
यह भी पढ़ें:- घर की बैठक के लिए सबसे शुभ दिशा
स्नानगृह से संबंधित वास्तुशास्त्र के कुछ प्रमुख सिद्धांत -
वास्तु शास्त्र में स्नान गृह के लिए कुछ आवश्यक नियम बताए गए हैं , जो निम्नलिखित हैं -
- अगर घर के दो कमरों में अलग अलग स्नान गृह बनाना हो तो इस बात का ध्यान रखें कि दोनों स्नान गृह एक दूसरे से जुड़े हुए हों ।
- अगर घर का स्नान गृह ईशान कोण यानि उत्तर-पूर्व दिशा में बना हुआ है तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आपका स्नान गृह ईशान कोण को पूरी तरह बंद ना कर रहा हो ।
- जिन घरों का मुख पश्चिम दिशा की ओर हो ,उनमें स्नान गृह बनाने के लिए वायव्य कोण सबसे उपयुक्त माना जाता है ।
- अगर घर का मुख दक्षिण दिशा की ओर है तो भी स्नान गृह के लिए वायव्य कोण ही सर्वाधिक शुभ बताया गया है ।
- अगर घर का मुख पूर्व दिशा की ओर है तो स्नान गृह बनाते समय इस बार का विशेष ध्यान रखें कि स्नान गृह का मुख आग्नेय कोण में होना चाहिए ।
- उत्तर दिशा में बने घरों के लिए वास्तु शास्त्र में वायव्य कोण ही सबसे अधिक शुभ माना गया है ।
- नैऋत्य कोण में बना स्नान गृह नकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है इसलिए भूल से भी घर का स्नान गृह नैऋत्य कोण में नहीं बनवाना चाहिए ।
- दक्षिण दिशा में स्नान गृह होने से घर में आर्थिक विपन्नता आती है । इसके अलावा घर के सदस्यों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है ।
- स्नान करते समय जातक का मुख हमेशा पूर्व दिशा में होना , वास्तु शास्त्र में बेहद शुभ माना गया है । इसके वस्त्र धरण करने के लिए सबसे उत्तम दिशा उत्तर दिशा मानी गई है ।
निष्कर्ष -
इस प्रकार से हमने जाना कि घर के स्नान गृह के लिए पूर्व दिशा सबसे अधिक शुभ फलदायी है । तो वहीं स्नान के पश्चात वस्त्र धारण के लिए उत्तर दिशा सर्वाधिक उपयुक्त है ।
यह भी पढ़ें:- घर के धरातल का उतार किस दिशा में होना चाहिए ?जानें सभी दिशाओं का फल !