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हिंदू धर्म में क्यों लगाते हैं, बिंदी और तिलक ? जानिए इसके फायदे और महत्व

Created by Asttrolok in Astrology 2 Jul 2024
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हिंदू धर्म में क्यों लगाते हैं, बिंदी और तिलक ? जानिए इसके फायदे और महत्व

हिंदू धर्म और संस्कृति में सदियों से बिंदी और तिलक का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। माथे पर सुशोभित ये चिन्ह केवल सौंदर्य प्रसाधन या सांस्कृतिक प्रदर्शन से कहीं अधिक हैं। बिंदी और तिलक धर्म, विज्ञान और सामाजिक सरोकारों का एक अनूठा संगम प्रस्तुत करते हैं, जो पीढ़ियों से भारतीय परंपरा का अभिन्न अंग रहे हैं।

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धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व:

बिंदी: माथे के बीचोंबीच, आज्ञा चक्र पर लगाई जाने वाली बिंदी, स्त्रीत्व, सौभाग्य, और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है। यह कुमकुम, चंदन, या सिंदूर से लगाई जाती है।

तिलक: तिलक को माथे, नाक, गाल, और छाती पर विभिन्न आकार और रंगों में लगाया जाता है। यह विभिन्न धार्मिक संप्रदायों और जातियों के अनुसार भिन्न होता है। वैष्णव आमतौर पर चंदन का 'उर्ध्व पुंड्र' लगाते हैं, जबकि शैव 'त्रिपुंड्र' लगाते हैं।


वैज्ञानिक लाभ:

बिंदी: माथे के बीचोंबीच स्थित आज्ञा चक्र एकाग्रता, स्मृति, और अंतर्ज्ञान से जुड़ा होता है। बिंदी लगाने से इस चक्र को उत्तेजित किया जाता है, जिससे मानसिक शांति, एकाग्रता, और ध्यान में वृद्धि होती है।

तिलक: तिलक लगाने के लिए उपयोग किए जाने वाले पदार्थ, जैसे चंदन, हल्दी, और सिंदूर, त्वचा के लिए लाभदायक होते हैं। इनमें एंटीऑक्सीडेंट और जीवाणुरोधी गुण होते हैं जो त्वचा को स्वस्थ रखते हैं।


सामाजिक महत्व:

बिंदी: विवाहित महिलाएं आमतौर पर लाल बिंदी लगाती हैं, जो उनके वैवाहिक सुख और सौभाग्य का प्रतीक है।

तिलक: तिलक लगाने से सामाजिक और धार्मिक समूहों में एकता और भाईचारा बढ़ता है। यह विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और सामाजिक कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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उदाहरण:

त्योहारों और विशेष अवसरों पर, लोग अपने घरों और मंदिरों में रंगोली और तिलक लगाकर उत्सव मनाते हैं।

विवाह समारोह में, दूल्हा और दुल्हन दोनों माथे पर तिलक लगाते हैं, जो उनके पवित्र बंधन का प्रतीक है।

ध्यान और योग के दौरान, लोग आज्ञा चक्र पर बिंदी लगाकर एकाग्रता और आत्म-जागरूकता प्राप्त करते हैं।


बिंदी और तिलक: लगाने की विधि और स्थान

बिंदी और तिलक लगाने की विधि और स्थान विभिन्न धार्मिक संप्रदायों, क्षेत्रों और व्यक्तिगत परंपराओं के अनुसार भिन्न हो सकते हैं।


बिंदी:

विधि:

अपनी तर्जनी उंगली से थोड़ा सा कुमकुम, चंदन या सिंदूर लें।

इसे अपनी भौंहों के बीच, आज्ञा चक्र पर लगाएं।

आप अपनी उंगली को गोलाकार गति में घुमाते हुए बिंदी लगा सकते हैं, या एक सीधी रेखा में लगा सकते हैं।

स्थान:

बिंदी को आमतौर पर भौंहों के बीच, आज्ञा चक्र पर लगाया जाता है।

कुछ लोग इसे थोड़ा दाईं या बाईं ओर लगा सकते हैं।

कुछ महिलाएं अपनी नाक के पुल पर भी बिंदी लगाती हैं।

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तिलक:

विधि:

अपनी तर्जनी या मध्यमा उंगली से थोड़ा सा चंदन, विभूति या अन्य तिलक पाउडर लें।

इसे माथे पर, आमतौर पर भौंहों के बीच में लगाएं।

आप एक ऊर्ध्व रेखा, तीन क्षैतिज रेखाएं (त्रिपुंड्र), या विभिन्न आकार और डिजाइन बना सकते हैं।

स्थान:

तिलक को आमतौर पर माथे पर लगाया जाता है, भौंहों के बीच में।

इसे नाक, गाल, छाती या गर्दन पर भी लगाया जा सकता है।

तिलक के आकार और डिजाइन का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व हो सकता है |


निष्कर्ष:

बिंदी और तिलक केवल धार्मिक चिन्ह नहीं हैं, बल्कि ये हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़े हुए हैं। इनका धार्मिक, वैज्ञानिक, और सामाजिक महत्व उन्हें भारतीय संस्कृति का एक अनमोल हिस्सा बनाता है।

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