पत्रिका में मांगलिक होना एक दोष मन जाता है। जब मंगल लग्न, चतुर्थ,सप्तम,अष्टम व द्वादश भाव मे होता है तो जातक मांगलिक कहलाता है। जिसे लोग एक दोष मानते है उससे घबराते है जबकि मांगलिक पत्रिका वाले जातक प्रभावशाली, विशेष गुण वाले, किसी भी कार्य को लग्न व निष्ठा से करने वाले होते है।
वह किसी भी परिस्थिति में घबराते नही है, ऐसे जातकों में महत्वकांक्षा अधिक होती है। जिसके कारण उनका स्वभाव क्रोधी प्रवर्ति का होता है।ऐसे जातकों में दयालुता का भाव अधिक होता है। ऐसे जातक उच्च पद , व्यावसायिक योग्यता, राजनीति, चिकित्सा, बिजली अभियंता जैसे पदों पर आसीन होते है। अब प्रश्न यह उठता है कि मांगलिक जातक का विवाह मांगलिक कन्या से ही क्यों किया जाता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मांगलिक जातक व जातिका अपने जीवन साथी के प्रति संवेदनशील होती है और उनका आपस मे मानसिक स्तर एक जैसा होता है। इसी कारण मांगलिक जातक व जातिका का विवाह मांगिलिक से ही किया जाता है। अर्थात मांगलिक होना कोई दोष नही है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मांगलिक होने के परिहार भी बताया गए है।
यदि जातक या जातिका की पत्रिका मांगलिक हो और दूसरे की न हो लेकिन उसकी पत्रिका में अरिष्ट योगकारक शनि या कोई पापी ग्रह विद्यमान हो तो मंगल का परिहार हो जाता है। लाल किताब के अनुसार यदि मांगलिक पत्रिका हो तो उसे कुछ सरल उपाय कर लेना चाहिए। यदि मंगल लग्न में हो तो तो भजन के पश्चात सौंफ व मिश्री जरूर खाये। यदि मंगल चतुर्थ भाव मे हो तो चांदी का चोकोर टुकड़ा अपने पास रखे।
यदि मंगल सप्तम भाव मे हो तो चांदी की एक ठोस गोली अपनी जेब मे रखे। यदि मंगल अक्षम भाव मे हो तो तंदूर में बनी मीठी रोटी कुत्तो को खिलाएं। यदि मंगल द्वादश भाव मे हो तो सोते समय तकिये के नीचे हरे सौंफ रखकर सोये।
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