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मन को समझना जितना सरल है उतना कठिन भी है । आप सोच रहे होंगे ये कैसी विरोधाभाषी बात है, या तो कोई चीज सरल हो सकती है या फिर कठिन हो सकती है , दोनों ही एक दूसरे के विपरीत हैं । लेकिन यहाँ सरल और कठिन कहने का अर्थ है कि कई बार हम चीजों को सतही रूप में समझ लेते हैं और हमें लगता है कि ये तो बहुत सरल है , इसको समझने में क्या है? लेकिन उन चीजों के पीछे बहुत गूढ अर्थ छुपा होता है जिसको समझना बहुत कठिन होता है और उस अर्थ तक हर कोई नहीं पहुँच पाता ।
अपने मन को समझना भी ठीक ऐसा ही होता है । हम में से अधिकांश लोगों को लगता है कि हम अपने मन को समझते हैं लेकिन बहुत बार यह सच नहीं होता है । वैसे मन को समझना कितना आवश्यक है यह बात किसी से छुपी नहीं है । आज के समय में हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी रूप में मानसिक तनाव से परेशान है और जब तक हम अपने मन को ठीक से नहीं समझते तब तक मानसिक परेशानी से मुक्ति पाना बहुत मुश्किल है । आज के लेख में हम आयुर्वेद के अनुसार अपने मन के बारे में विस्तार से समझेंगे ।
आयुर्वेद का अनुवाद 'जीवन का ज्ञान' है। इसे कई विद्वानों द्वारा सबसे पुराना उपचार विज्ञान माना गया है।
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मन क्या है?
आयुर्वेद के अनुसार मन हमारी चेतना का केंद्र बिन्दु है । किसी वस्तु या पदार्थ को देखने से लेकर उसके बारे में पूरा विश्लेषण व अंत में उसके बारे निर्णय लेने में मन सबसे महत्वपूर्ण कार्य करता है । मन हमारी ज्ञानेन्द्रियों , हमारी बुद्धि व हमारी आत्मा को जोड़ने वाला पुल है । हम अपनी आँखों से कोई चीज देखते हैं , फिर बुद्धि के माध्यम से उसके अच्छे व बुरे पक्षों का विश्लेषण करते हैं और अंत में हमारी आत्मा उस पर अंतिम निर्णय लेती है ।
मन इन सबको आपस में जोड़ने का कार्य करता है । आँखों ने जो देखा मन उसे विश्लेषण के लिए हमारी बुद्धि के पास ले जाता है और बुद्धि के विश्लेषण को अंतिम निर्णय के लिए आत्मा के पास ले जाता है । ये सब काम इतनी शीघ्रता से होता है कि आपको पता नहीं चल पाता कि मन ने क्या किया , बुद्धि ने क्या किया और आत्मा ने क्या किया ? अंत में आपके पास बस अंतिम निर्णय होता है जो इस पूरी प्रक्रिया का परिणाम होता है ।
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मन का स्थान क्या है?
शरीर में मन का स्थान कहाँ पर होता है , इस विषय पर आयुर्वेद में मतभेद हैं। मन के स्थान को लेकर आयुर्वेद में दो तरह के मत हैं । आयुर्वेद में जो पहला मत है उसके अनुसार मन का स्थान हृदय है । तो वहीं दूसरा मत कहता है कि हमारे मन का स्थान तालु (जीभ के नीचे का स्थान ) से लेकर सिर के ऊपरी भाग तक है ।
ये दोनों मत अपनी अपनी जगह सही हैं । 1991 में हुए एक शोध में यह पाया गया कि हमारे शरीर की समस्त भावनाओं के दो केंद्र बिन्दु हैं और वही दोनों हमारे मन के भी स्थान हैं । इसको इस प्रकार से समझा जा सकता है कि मन के रहने का स्थान हृदय है और मन के कार्य करने का स्थान तालु और सिर के मध्य में है ।
निष्कर्ष -
इस प्रकार से आयुर्वेद के माध्यम से हमने जाना कि मन हमारी समस्त क्रियाओं का मुख्य केंद्र है और आयुर्वेद में मन के दो स्थान बताए गए हैं , जिसमें एक हमारा हृदय है और दूसरा मस्तिष्क के आसपास का भाग ।
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