स्वस्थ शरीर के लिए आयुर्वेद में बहुत सारे नियम-सिद्धांत व प्राकृतिक औषधियाँ बताई गईं हैं । शरीर की अशुद्धियाँ दूर करने के लिए ऐसी ही एक चिकित्सा आयुर्वेद में प्रचलित है, जिसका नाम है -पंचकर्म । आज हम पंचकर्म के बारे में विस्तार से बात करने जा रहे हैं। आज के लेख में हम जानेंगे कि पंचकर्म क्या है? पंचकर्म की आवश्यकता कब पड़ती है? पंचकर्म को करने की विधि क्या है? इसके साथ ही पंचकर्म करते समय किन चीजों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए?
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आयुर्वेद में मुख्य रूप से दो प्रकार की चिकित्सा बताई गई हैं -
वमन - शरीर में जब कफ दोष के कारण व्याधियाँ उत्पन्न होने लगती हैं तो कफ दोष को संतुलित करने के लिए वमन का सहारा लिया जाता है । इस क्रिया में व्यक्ति को आयुर्वेदिक औषधियों के द्वारा मुंह से वमन यानि उल्टी करा कर शरीर में व्याप्त कफ संबंधित दोषों को बाहर निकाला जाता है । इन दोषों में सर्दी जुकाम, अधिक नींद आना, भूख ना लगना आदि दोष शामिल हैं । स्वस्थ व्यक्ति अगर शरीर की बेहतरी के लिए यह क्रिया करना चाहते हैं तो बसंत ऋतु के आसपास का समय सर्वाधिक उपयुक्त बताया गया है ।
विरेचन - पंचकर्म की दूसरी क्रिया है - विरेचन क्रिया । विरेचन में व्यक्ति को आयुर्वेदिक औषधियों के माध्यम से गुदा द्वार से शरीर के दोषों को बाहर निकाला जाता है । यह क्रिया मुख्य रूप से पित्त दोष से उत्पन्न होने वाले विकारों को दूर करने के लिए अपनाई जाती है । इन विकारों में त्वचा से संबंधित विकार, आँख से संबंधित विकार , पीलिया , बालों से संबंधित विकार आदि विकार शामिल हैं। यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति शरीर की बेहतरी के लिए यह क्रिया करना चाहता है तो उसके लिए अक्टूबर महीने का समय श्रेष्ठ माना गया है।
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बस्ती- बस्ती चिकित्सा को शरीर में वात दोष से उत्पन्न होने वाले विकारों के लिए सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा बताया गया है । इस क्रिया में आयुर्वेदिक औषधियों को गुदा द्वार के माध्यम से शरीर में प्रविष्ट कराया जाता है । इससे जुड़े प्रमुख विकार जोड़ों में दर्द, हड्डियों में दर्द, शरीर में अकड़न, पेट संबंधित विकार आदि हैं। स्वस्थ व्यक्ति के लिए बस्ती क्रिया के लिए वर्षा ऋतु के समय को सर्वाधिक उपयुक्त बताया गया है ।
नस्य- आयुर्वेद में गर्दन के ऊपर के सभी विकारों को दूर करने के लिए नस्य क्रिया का सहारा लिया जाता है। नस्य क्रिया में औषधि की कुछ बूंदें नाक के माध्यम से शरीर में प्रविष्ट कराई जाती हैं। मानसिक अशान्ति व अवसाद जैसे विकारों में यह क्रिया बेहद लाभप्रद है। यह चिकित्सा पूरे वर्ष में कभी भी की जा सकती है।
रक्तमोक्षण- इस क्रिया में शरीर से अशुद्ध रक्त को बाहर निकाला जाता है। रक्त बाहर निकालने के लिए निर्वात का सहारा लिया जाता है। रक्त व त्वचा संबंधी विकारों के लिए यह क्रिया सर्वाधिक लाभकारी सिद्ध होती है। इस क्रिया को करते समय विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष -
इस प्रकार से हमने आयुर्वेद में पंचकर्म के महत्व को विस्तार से समझा। इन पाँचों क्रियाओं में से कोई भी क्रिया करने से पहले किसी विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य करें।
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