किसे कहते हैं गुरु? किसे बनायें गुरु? गुरु पूर्णिमा का महत्व क्या होता है? अगर गुरु नहीं है तो क्या करें ? क्या करें जिससे गुरु पूर्णिमा पर गुरु की कृपा मिल जाये. गुरु की पूर्णिमा ही क्यों होती है, एकादशी क्यों नहीं होती?
जो सम्पूर्ण हो, हर दृष्टिकोण से पूर्ण हो वही गुरु हो सकता है।
इन सब चीज़ों की पूर्ति पूर्णिमा के दिन होती है इसलिए हम गुरु पूर्णिमा मनाते हैं।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के पर्व के रूप में मनाया जाता है। आषाढ़ के महीने में एक गुप्त नवरात्री भी आती है, इसी महीने में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा भी होती है। आषाढ़ की पूर्णिमा के दिन रूप से चंद्रमा संपूर्ण होता है और चंद्र होता है मन, और बिना मन के गुरु का पूजन हो नहीं सकता, इसलिए गुरु की पूर्णिमा होती है।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन एक और खास बात है. जो हमारे 18 पुराणों के रचयिता हैं, महर्षी वेद व्यास जी उनका जन्म भी गुरु पूर्णिमा के दिन हुआ था। अतः इसको व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन से ऋतु परिवर्तन भी होता है। आषाढ़ के समाप्त होते ही जब सावन शुरू होता है तो ऋतु परिवर्तन बहुत तेजी से होता है। पुराने ज्योतिष इस दिन वायु का परिक्षण करके गणना करते थे और जान जाते थे की आने वाले समय में मौसम कैसा रहेगा। गुरु पूर्णिमा वाले दिन शिष्य अपने गुरु की विशेष पूजा करते हैं।
गुरु को आपसे कुछ नहीं चाहिए। यह मत समझो की गुरु की पूजा नहीं करेगें तो गुरु नाराज़ हो जायेगें। ऐसा संभव नहीं है, गुरु कभी नाराज़ नहीं होते और अगर नाराज़ हो भी जाएं तो वह शिष्य को सुधारने के लिए दंड दे सकता है लेकिन हमेशा शिष्य का भला ही चाहता है। गुरु पूर्ण रूप से सकारात्मक ऊर्जा में अच्छाई बुराई से परे होता है। सिर्फ देता है लेकिन शिष्य का दायित्व है कि अपने गुरु का सम्मान करे, अपने गुरु का आभार व्यक्त करे। इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा करते हैं और शिष्य यथा शक्ति दक्षिणा, पुष्प और वस्त्र आदि अपने गुरु को भेंट करता है।
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सबसे ज्यादा अहम चीज़ जो गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरु को दी जाती है वह है शिष्य के अवगुण। शिष्य अपनी सारी बुराइयों को, अपने सारे अवगुण को अपने गुरु को अर्पित कर देता और अपने जिवन का सारा भार अपना अच्छा , अपना बुरा सब कुछ गुरु को दे देता है ताकि गुरु के प्रति समर्पित हो जाए एवम गुरु गोविंद से मिलने का मार्गदर्शन ले । हर गुरु अपने शिष्य को कुछ नियमों में रहकर जीना सिखाता है और अनुशासन में रहना सिखाता है, अगर शिष्य वैसे ही गुरु के बताए नियमों के अनुसार रहने लगे तो उसके जीवन का उद्धार हो जाता है और उसे गुरु की कृपा मिलती है।
इसलिए गुरु बनाने को बोला जाता है। गुरु की सेवा करने को बोलते है क्योंकि गुरु के आशीर्वाद से अपना जीवन बहुत अच्छा हो जाता है।
ममता अरोरा
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