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राज योग के समान होता है बुधादित्य योग
सूर्य और बुध की युति से बनने वाले बुधादित्य योग की चर्चा मिलती है। सूर्य आत्मा, पिता, सम्मान, पद प्रतिष्ठा , सरकारी सेवा क्षेत्रो में उन्नति आदि का कारक ग्रह है, कुंडली में सूर्य अकेला मजबूत हो और बाकी सारे ग्रह कमजोर हो तो जातक भाग्य शाली होता है , लेकिन यदि सूर्य खराब हो तो सारे अच्छे ग्रह मिलकर कर भी जातक को वो पद नही दिला पाते जिसका वो हकदार होता है। इसी तरह बुध को ज्ञान, बुद्धि, , व्यापार व्यवसाय , धन आदि का कारक ग्रह माना जाता है। कुंडली में बुधादित्य योग के लाभ -
केसे बनता है बुधादित्य योग ____किसी जातक की कुंडली में सूर्य और बुध एक साथ किसी एक घर में बैठ जाते है
तो इसमें बुधादित्य का निर्माण होता है। यह शुभ योग में आता है। कई विद्वानो इस योग की तुलना राज योग से की है।
लेकिन बुधादित्य योग सभी के लिए अच्छा फल दे यह जरूरी नहीं है कुंडली के अन्य ग्रहों की स्थिति, बला बल दृष्टि पर भी इस योग का फल निर्भर करता है। साथ ही यह योग बनाने वाले सूर्य और बुध दोनो मजबूत होनाआवश्क है।
बुधादित्य का फल __जातक की कुंडली में बुधादित्य योग होता है वह प्रखर बुद्धि वाला होता है। अपने ज्ञान और बुद्धि के बल पर वह दुनिया पर राज करता है। इसलिए इसे राजयोग कहा जाता है। ऐसे जातक की वाणी प्रभावी होती है। वाक क्षमता मजबूत होती है नेतृत्व करने का सहज गुण होता है।
मान सम्मान प्रतिष्ठा जो चाहे वह हासिल कर लेता है।
बुधादित्य योग: किस भाव में क्या फल देता
जन्म कुंडली के प्रथम भाव अर्थात लग्न में यदि बुधादित्य योग बने तो बालक साहसी वीर, तेज बुद्धि , आत्म सम्मानी और ज्ञानी होता है। कभी कभी ऐसा जातक अहंकारी भी होता है , लेकिन वह अपने ज्ञान के दाम पर बहुत धन अर्जित करता है। इसे नेत्र रोग और वात पित्त की समस्या होती रहती हैं। व्यापार में प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
प्रथम स्थान (तन भाव)_
जन्म कुंडली के प्रथम भाव अर्थात लग्न में यदि बुधादित्य योग बने तो बालक साहसी वीर, तेज बुद्धि , आत्म सम्मानी और ज्ञानी होता है। कभी कभी ऐसा जातक अहंकारी भी होता है , लेकिन वह अपने ज्ञान के दाम पर बहुत धन अर्जित करता है। इसे नेत्र रोग और वात पित्त की समस्या होती रहती हैं। व्यापार में प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
द्वितीय स्थान (धन भाव)_
जन्म कुंडली के दुसरे स्थान में बुधदित्य योग हो तो जातक दुसरो की वस्तुओ का उपभोग करने की आदत होती है वह हमेशा दुसरो के धन , स्त्री पर नजर रखता है, हालंकि स्वयं भी अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए खूब धन अर्जित करता है। इसका वैवाहिक जीवन सुखी होता है तथा विदेशी वस्तुओं के व्यापार से धन अर्जित करता है।
तृतीय स्थान (सहज) भाव _
कुंडली के तीसरे स्थान से बुधदित्य बने तो जातक को भाई बहनो , परिजनों का विशेष प्रेम प्राप्त होता है। पेटर्क संंपती अर्जित करता है जब जब सूर्य शुभ स्थिति में होता है तो इन्हे खूब तरक्की मिलती है। भाग्योदय के अनेक अवसर मिलते हैं। व्यापारी वर्ग के लोग अनेक उधमो से धन अर्जित करते हैं। जातक पराक्रमी होता है।
चतुर्थ स्थान (सुख भाव)_
कुंडलीके चौथे स्थान में बनने वाला बुधदित्य योग सर्वषेठ कहा गया है। इस स्थान में अगर बुधदित्य योग हो तो जातक प्रत्येक कार्य में सफलता सफलता हासिल करता है मान सम्मान पद प्रतिष्ठता सरकारी सेवा क्षेत्रों में उन्नति सफल राज नेता, न्यायाधीश होता है, सरकारी संंपतियो का उपभोग करता है।
पंचम स्थान (संतान भाव)_
पंचम स्थान से बनने वाले बुधादित्य योग प्रतिभावन संतान का सुख प्राप्त करता है। हालंकि कुछ विद्वानों का मानना है की पंचम में बुधादित्य योग के प्रभाव से संतान कम होती है । ऐसा जातक कलात्मक वस्तुओ के व्यापार में माहिर होता है। नेतृत्व क्षमता जबरदस्त होती है बुध प्रबल हो तो अनेक क्षेत्रों में सफलता मिलती है।
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शष्टम स्थान (शत्रु भाव)_
छ्टे भाव में बना बुध्दतीय योग शत्रुओ पर विजय दिलवाता है। चाहे कितने भी शत्रु हो कुछ बिगाड़ नही पाते। लेकिन सूर्य कमजोर हो तो जातक के नेत्र और मस्तिष्क रोग होने की आशंका रहती है। बुध कमजोर हो तो जातक की बौद्धिक क्षमता कमजोर होती है। ऐसा जातक अच्छा जज ज्योतिष डाक्टर होता है।
सप्तम स्थान (विवाह साझेदारी भाव)_
सप्तम स्थान में बना बुधदित्य योग जातक को अतिकामी बनाता है ऐसे जातक अनेक विपरीत लिंग से संबध बनते है। कार्य व्यवसाय नौकरी में सफलता मिलती है। अच्छा लेखक बनता है साझेदारी के बिजनस में लाभ कमाता है। इसे पत्नी के भाग्य का सहारा भी मिलता है। एक से अधिक कार्यो में पैसा कमाता है।
अष्टम स्थान (आयु भाव )_
आठवे स्थान में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को दीर्घायु बनाता है और स्वस्थ जीवन का मालिक बनाता है। यदि सूर्य कमजोर हो तो जातक को वाहनों से चोट लगती हैं। ऐसा जातक विदेशी व्यापार से धन अर्जित करता है। गुप्त और रहस्यमय विधाओं का जानकर होता है। पेट्रक संपति प्राप्त होती है। धार्मिक आध्यात्मिक प्रवृति का होता है।
नवम स्थान (भाग्य भाव)_
भाग्य स्थान में बनने वाले बुधादित्य योग जातक को एक राजा के समान जीवन देता है । लेकिन ऐसा व्यक्ति अहंकारी होता है। इस कारण कई लोग इनसे चिड़ते भी है। ऐसा जातक को अनेक क्षेत्रो में सफलता मिलती है। सरकार में उच्च अधिकारी या मंत्री बनने के योग होते हैं ऐसा जातक बड़ा संत होता है।
दशम स्थान (आजीविका भाव)_
दशम स्थान में बनने वाला बुधादित्य योग ऐसा जातक सरकारी नोकरी में देश के शीर्ष तक पहुंचता है। प्रधान मंत्री, राष्ट्र पति भी इस श्रेणी में आते हैं। व्यापार के क्षेत्र मे दुनिया के अनेक देशों से डील करता है। अविष्कारक, वैज्ञानि , खोजकर्ता भी इस श्रेणी में आते।
एकादश स्थान (आय भाव )_
11वे स्थान में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को कलावन, रूपवान, धनवान बनाता है। ऐसा जातक अनेक मार्ग से धन कमाता है। भूमि, भवन , संपति , कर्षी भूमि प्राप्त करता है। बड़ा बिल्डर बनता है । सरकारी क्षेत्र में सफलता मिलती है।
द्वादश स्थान (व्यय भाव )_
कुंडली में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को थोड़ा क्रूर मिजाज बनाता है। गलत कार्यों से धन अर्जित करता है। लेकिन यदि धर्म कर्म से जुड़ा हो तो ऐसा व्यक्ति बड़ा पद हासिल करता है वैवाहिक जीवन सुखी होता है। विदेशी कार्यों से पैसा कमाता है।
ममता अरोरा
ऑनलाइन
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