स्वर कोकिला और भारत रत्न लता मंगेशकर जी का जन्म 28सितंबर 1929 को रात को 9 बजकर 50 मिनट इंदौर में हुआ था । वृषभ लग्न वृषभ नवांश कर्क राशि है और लता जी का जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ था जिसका स्वामी शनि है । उनकी कुंडली में लग्नेश शुक्र चतुर्थ भाव में केंद्र में है शुक्र को भी गायकी के लिए देखते हैं और नवांश में शुक्र तृतीय भाव (स्वर भाव) चंद्र की राशि कर्क में है इसी वजह से आवाज में वह कशिश है जो अन्य गायक कलाकारों में नही है । लग्न कुंडली में चंद्र तृतीय भाव कर्क राशि में स्थित है जो स्वर भाव के साथ साथ पराक्रम भाव भी है लता जी ने काफी मेहनत कर उस जमाने में अपनी पहचान बनाई यह सहज काम नही था।
लता जी के नवांश कुण्डली में पंचम भाव ( विद्या और मनोरंजन ) का स्वामी बुध वर्गोत्तम होने से आप लंबे समय तक गायन के क्षेत्र में रही ।
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इन योगों ने दिलाई कामयाबी - वृषभ लग्न की कुंडली में लग्न में गुरु और तृतीय भाव में चंद्रमा , चतुर्थ भाव सुख भाव में लग्नेश शुक्र एवम पंचम भाव विधा भाव में सूर्य और बुध बैठे हैं जो बुधादित्य योग भी बना रहे हैं ।
बुध ने दी कोयल जैसी आवाज - लताजी के जीवन में सर्वाधिक प्रभाव शाली ग्रह एवम वाणी भाव के स्वामी बुध का प्रभाव अत्यधिक रहा । बुध योग कारक सूर्य के साथ पंचम भाव में बैठे हैं जो शास्त्रों के अनुसार केंद्र भाव के स्वामी होकर त्रिकोणेश के साथ त्रिकोण में बैठे हैं यह युति पंचम विधा भाव में बनी है । क्योंकि पंचम भाव प्रेम का भी कारक है इसलिए लता जी ने अपनी वाणी से रोमांटिक गाने ज्यादा गाए और सूर्य चतुर्थ भाव का स्वामी जो जनता के लिए और प्रसिद्धि के लिए देखा जाता है तो सूर्य पंचम में पंचमेश के साथ केंद्र त्रिकोण का राजयोग दे रहा है । इसलिए जनता से उन्हें बहुत प्रेम प्यार मिला और फेमस हुई । इनकी कुंडली में लग्न में गुरु को श्रेष्ठ फल देने वाला माना गया है गुरु के कारण विवेकशीलता और सौम्य प्रवृत्ति देता है।
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.गुरु ने बढ़ाया मान - कुंडली में वृषभ लग्न के सबसे बड़े राजयोग कारक शनि अष्टम में शनि आठवें भाव में दीर्घायु बनाता है। और अष्टम में बैठे शनि की पूर्ण दृष्टि वाणी भाव पर पड़ रही है लता जी12 वर्ष के बाद ही प्रोफेशनल तौर पर गायन आरंभ कर दिया था गुरु देव के लग्न पर होने पर और चंद्रमा से एकादश भाव में होने के कारण इन्हें कई मानद उपाधियों विभूषित किया गया इन्ही सब योगों ने इन्हे भारत रत्न भी दिलाया।
कुंडली से जाने क्यों नहीं हुआ विवाह -
लता जी के जीवन में शनि देव का प्रभाव सर्वाधिक रहा सप्तम भाव के स्वामी ( जो पति का भाव देखा जाता है ) उसके स्वामी अपने से बारहवें व्यय भाव में बैठा है किसी भी जातक की जन्म कुंडली में कोई भी ग्रह किसी भी भाव का स्वामी होकर यदि 6,8,12 वे भाव में बैठता है तो वह जिस भाव का स्वामी होता है उस भाव का फल शिन कर देता है यहां पर मंगल प्रबल मार्केश भी है और पति भाव के स्वामी भी जिसके परिणाम स्वरूप कुछ संयोग बनते हुए भी विवाह संभव नही हो पाया।
6फरवरी 2022को उनकी डेथ हुई तब उन्हे अष्टमेश मृत्यु भाव के स्वामी की दशा चल रही थी और केतु की अंतर्दशा जो 6 th हाऊस में मार्केश के साथ बैठा है और चंद्रमा प्रत्यंत्र में जो की अष्टम से अष्टम है और बुध सूक्ष्म में जो की 2and लार्ड मार्केश है तो उनकी मृत्यु हुई।
एस्ट्रोलाजर - ममता अरोरा
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