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श्रीरामेश्वर ज्योतिर्लिंग: क्या रामेश्वरम में शिव-राम मिलन से खुलते हैं मोक्ष के द्वार?

Created by Asttrolok in Astrology 19 Aug 2025
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श्रीरामेश्वर ज्योतिर्लिंग: क्या रामेश्वरम में शिव-राम मिलन से खुलते हैं मोक्ष के द्वार?

श्रीरामेश्वर ज्योतिर्लिंग: एक दिव्य धाम का भक्तिमय परिचय

भारत के पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक अत्यंत पूजनीय स्थान है श्रीरामेश्वर ज्योतिर्लिंग। यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है, जहाँ भगवान श्रीरामचन्द्रजी ने स्वयं इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में ग्यारहवें स्थान पर स्थित यह तीर्थ हिन्दू धर्म के चारधामों में से एक माना जाता है। उत्तर भारत में काशी की जो महत्ता है, उसी प्रकार दक्षिण में रामेश्वरम की प्रतिष्ठा है।

पौराणिक महत्व एवं इतिहास

सुंदर शंख के आकार के इस द्वीप को पहले भारत की मुख्य भूमि से जोड़ने वाली कड़ी पर सागर की लहरों ने विद्रोह कर दिया, जिससे यह द्वीप चारों ओर से जल से घिर गया। यह भव्य स्थल हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी के संगम पर टिका हुआ है। रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले यहीं पर सेतु (पुल) निर्माण करवाया था। यह सेतु पत्थरों से बना था, जिन्हें वानर सेना ने पानी पर तैरते हुए रखा। इस पुल के माध्यम से श्रीराम की सेना लंका पहुंची और रावण का नाश कर सीता माता की प्राप्ति हुई।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि बाद में श्रीराम ने विभीषण के आग्रह पर धनुषकोटी नामक स्थल पर इस सेतु को तोड़ दिया था। आज भी इसकी यादगार के तौर पर समुद्र में सेतु के अवशेष दिखाई देते हैं। 1480 ईस्वी में एक भयंकर चक्रवात ने उस क्षेत्र के कुछ हिस्सों को बहा दिया। लगभग पांच सौ साल पूर्व कृष्णप्पनायकन नामक राजा ने उस स्थल पर पत्थर का पुल बनाया, जिसके बाद अंग्रेजों के काल में उस पुल की जगह रेल पुल के निर्माण का विचार हुआ। एक जर्मन इंजीनियर की मदद से यह पुल बनाया गया, जो आज भी रामेश्वरम को भारत के दूसरे हिस्सों से जोड़ता है।

मंदिर की वास्तुकला

रामेश्वरम मंदिर विश्व का सबसे लंबा गलियारा लिए हुए है, जिसकी लंबाई उत्तर-दक्षिण दिशा में लगभग 197 मीटर और पूर्व-पश्चिम दिशा में 143 मीटर है। मंदिर का प्रवेश द्वार, गोपुरम, चौकस नक्काशी वाला 38.4 मीटर ऊंचा है। विशालाक्षीजी के गर्भगृह के निकट नौ शिवलिंग स्थापित हैं, जिन्हें लंका के राजा विभीषण ने स्थापित किया था। मूल मंदिर 1173 ईस्वी में श्रीलंका के राजा पराक्रम बहु ने बनाया था।

मंदिर में हजारों पत्थरों का कार्य देखकर विदेशी भी हैरान रह जाते हैं, क्योंकि हर खंभे पर बेल-बूटे की अलग-अलग और विशिष्ट नक्काशी की गई है। मंदिर परिसर में तीन प्राकार बने हुए हैं, जिनमें तीसरा प्राकार लगभग सौ वर्ष पहले पूर्ण किया गया है और इसकी लम्बाई चार सौ फुट से अधिक है। यहाँ के प्राकार की दिव्य कला किसी भी दर्शनार्थी को मंत्रमुग्ध कर देती है।

पौराणिक कथा और धार्मिक महत्ता

शिवपुराण में वर्णित कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीराम सीता माता की रक्षा के लिए लंका गए, तो समुद्र के पार सेतु निर्माण के लिए उन्होंने शिवलिंग की स्थापना करने का निर्णय लिया। उन्होंने गंधमादन पर्वत पर शिवलिंग का पूजन किया, जहां भगवान शिव ने स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर श्रीराम को आशीर्वाद दिया।

शिवपुराण के अनुसार:

"जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं। ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं।
जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि। सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि।"

अर्थात्, जो कोई भगवान श्रीरामेश्वर का दर्शन करता है, वह सांसारिक पापों से मुक्त होकर भगवान के लोक को प्राप्त होता है। यह शिवलिंग सभी पापों का नाश करने वाला है और जीवन में मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।


शनि साढ़ेसाती की शुरुआत और प्रभाव

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सूर्य ग्रहण 2025 की तारीख और जन्म कुंडली में इसका प्रभाव

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  • रेखाओं की लंबाई, मोटाई, और स्थिति पर गौर करें।

  • रेखाओं में टूट-फूट, शाखाएं, या अन्य विशेषताओं को समझें।

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निष्कर्ष:

श्रीरामेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल हिंदू धर्म का एक पवित्र धाम है बल्कि यह आध्यात्मिक मुक्ति का स्रोत भी है। इसके दर्शन से जीवन के पाप नष्ट होते हैं और भक्तों को शांति मिलती है। शनि साढ़ेसाती, सूर्य ग्रहण 2025 और हस्तरेखा जैसे ज्योतिषीय विषयों को समझ कर हम जीवन में सुख-शांति और सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

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यह यात्रा आपके जीवन में नई ऊर्जा और आध्यात्मिक गहराई लेकर आएगी।

यह भी पढ़ें: श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिंग: क्या सचमुच यहाँ शिव ने नागराज की रक्षा की?



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