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वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का निर्माण करते समय घर के सभी भागों पर बराबर ध्यान देना आवश्यक है। किन्तु घर के जिस भाग के बारे सबसे अधिक चर्चा होती है, वो है घर का मुख्य द्वार। आगे हम वास्तु शास्त्र के अनुसार इस सिद्धांत का विश्लेषण करने जा रहे हैं कि घर का मुख्य द्वार किस दिशा में होने पर सर्वाधिक शुभ फल देता है। इसके साथ ही हम यह भी जानेंगे कि किसी भी दिशा में स्थित मुख्य द्वार घर के सदस्यों पर कैसा असर डालता है।
मुख्य द्वार वास्तु की देखभाल करना बहुत जरूरी है। द्वार घर का प्रवेश द्वार है जहां से आप सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं।
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वास्तुशास्त्र में मुख्य द्वार के प्रकार -
वास्तु शास्त्र में मुख्य द्वार सामान्यतः 4 प्रकार के बताए गए हैं।
मुख्य द्वार के प्रकार निम्नलिखित हैं -
1. पूर्व द्वार
2. पश्चिम द्वार
3. उत्तर द्वार
4. दक्षिण द्वार
वास्तुशास्त्र में पूर्व द्वार का महत्व -
वास्तु शास्त्र में पूर्व द्वार को विजय द्वार भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि घर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में होने से जातक अपने जीवन में आने वाली सभी समस्याओं पर विजय पाने में सफल रहता है। पूर्व द्वार को वास्तु शास्त्र में बहुत उत्तम माना गया है । पूर्व दिशा में मुख्य द्वार होने से सुबह सूर्य की किरणें घर के अंदर आती हैं जो घर के सदस्यों में दिन भर काम करने के लिए सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं। इसके अलावा पूर्व द्वार जातक को मानसिक शांति के साथ ही भौतिक सुख समृद्धि प्रदान करने में सहायक होता है।
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वास्तुशास्त्र में पश्चिम द्वार का महत्व -
वास्तु शास्त्र में पश्चिम द्वार को मकर द्वार के नाम से भी जाना जाता है। घर का मुख्य द्वार अगर पश्चिम द्वार में है तो यह जातक को मिला जुला फल देता है यानि ना ही यह बहुत शुभ फल देता है और ना ही बहुत अशुभ। पश्चिम द्वार घर के सदस्यों की मानसिक शांति को कुछ हद तक भंग अवश्य करता है किन्तु इसके साथ ही यह जातक को धन कमाने के बहुत सारे अवसर प्रदान करता है। ये और बात है कि जातक पर्याप्त धन कमाने के बाद भी धन संचित कर पाने में असफल ही रहता है। यह जातक के भाग्य में भी वृद्धि करता है।
वास्तुशास्त्र में उत्तर द्वार का महत्व -
वास्तु शास्त्र में उत्तर द्वार को कुबेर द्वार भी कहा जाता है। वास्तु के अनुसार घर के मुख्य द्वार का उत्तर में द्वार होना शुभ माना गया है। यह द्वार कुबेर द्वार है इसलिए ऐसे जातक जो किसी भी तरह के व्यापार में संलग्न हैं, उनके लिए यह द्वार बेहद शुभ फल प्राप्त करने में सहायक होता है। ऐसे जातक कुबेर की कृपा से अपने व्यापार में खूब धन कमाने में सफल रहते हैं। इसके अलावा उत्तर द्वार समाज में जातक के मान सम्मान में वृद्धि करता है और जातक सभी तरह के सुख भोगता है।
वास्तुशास्त्र में दक्षिण द्वार का महत्व -
वास्तु शास्त्र में दक्षिण द्वार को यम द्वार भी कहा जाता है। चारों द्वारों में सबसे अधिक अशुभ दक्षिण द्वार को ही माना गया है। दक्षिण द्वार होने से जातक को आकस्मिक दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है। यह घर के सदस्यों के स्वास्थ पर बुरा असर डालता है। इसके साथ ही जातक को आर्थिक रूप से कमजोर करता है और समाज में उसकी प्रतिष्ठा को चोट पहुंचता है।
निष्कर्ष -
वास्तु शास्त्र में मुख्य रूप से यही चार द्वार बताए गए हैं। आज के लेख में हमने चारों द्वारों व जातक के जीवन में इनके प्रभावों का विस्तार से विश्लेषण किया।
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