अर्धनारीश्वर अष्टकम् स्तोत्र भगवान् शिव एवं माता पार्वती के संयुक्त, अर्ध- नारी‐शरीर रूप अर्थात् “अर्धनारीश्वर” का दिव्य स्तुति- पाठ है।
यदि आपकी कुंडली में मंगल (मंगल ग्रह) या चंद्र (चंद्र ग्रह) कमजोर हैं और जीवन में स्वास्थ्य या ऊर्जा की कमी हो रही है, तो इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत फलदायी माना जाता है।
English:
Ardhnarishwar Ashtakam is a divine hymn of the combined form of Lord Shiva and Goddess Parvati. If Mars or Moon is weak in your horoscope, and you face health or energy issues, reciting this stotram brings positive results. Free PDF available
1. अर्धनारीश्वर अष्टकम् स्तोत्र किसके द्वारा लिखा गया है?
यह स्तोत्र श्री उपमन्यु ऋषि द्वारा रचित माना जाता है। कुछ स्रोतों में यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित बताया गया है। यह प्राचीन एवं प्रतिष्ठित स्तोत्र है, जिसे भक्तिगुण के साथ पाठ किया जाता रहा है।
2. अर्धनारीश्वर अष्टकम् स्तोत्र किन- किन भगवानों को समर्पित है?
यह स्तोत्र विशेष रूप से भगवान शिव एवं माता पार्वती के अर्धनारीश्वर रूप को समर्पित है जहाँ शिव और शक्ति एक ही शरीर में एकाकार दिखाई देते हैं।
स्तोत्र में “नमः शिवायै च नमः शिवाय” जैसे वाक्यांश दिए गए हैं, जिससे शिव और शक्ति (पार्वती) दोनों के प्रति श्रद्धा का भाव स्पष्ट होता है।
इस प्रकार ये दोनों देव- देवियाँ (शिव एवं पार्वती) न सिर्फ अलग रूपों में बल्कि संयुक्त स्वरूप में पूजनीय हैं।
3. इसका वास्तु और ज्योतिष (Astrology) में क्या मदद करता है?
इस स्तोत्र को जीवन में शांति, संतुलन और ऊर्जा प्राप्ति का एक उपाय माना गया है, खासकर जब कुंडली में चंद्र या मंगल जैसे ग्रह कमजोर हों।
चूंकि शिव- शक्ति का रूप अर्धनारीश्वर रूप है - जहाँ पुरुष और नारी, शक्ति और चेतना, स्थिरता और परिवर्तन, सब समाहित हैं - इसलिए यह स्तोत्र हमारे अंदर संतुलन, सामंजस्य, आध्यात्मिक जागृति ला सकता है।
इसके नियमित पाठ से मानसिक तनाव, ऊर्जा की कमी, स्वास्थ्य संबंधी बाधाएँ कम हो सकती हैं तथा जीवन- दृष्टि में स्पष्टता आ सकती है।
यदि आपके किसी ग्रह (मंगल/चंद्र) के कारण जीवन- मार्ग में बाधाएँ आ रही हों - जैसे स्वास्थ्य में उतार- चढ़ाव, ऊर्जा में कमी, गृह- परिवार में अशांति - तो यह पाठ एक उपाय के रूप में उपयोगी है।
इसे पढ़ते समय मन को शांत रखना, निःस्वार्थ भक्ति भाव से करना तथा नियमितता बनाए रखना श्रेयस्कर है।
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4. अर्धनारीश्वर अष्टकम् स्तोत्र किनको पढ़ना चाहिए - जिससे उसे उपयोगी मदद मिले?
वे लोग जिनकी कुंडली में मंगल या चंद्र ग्रह कमजोर स्थित में हों, और जिनके जीवन में शक्ति- कमी, ऊर्जा- कमी, स्वास्थ्य- सम्बंधित समस्या या मानसिक अस्थिरता हो रही हो।
जिनके जीवन- मार्ग में संतुलन (पुरुष/स्त्री, काम/धर्म, स्थिरता/परिवर्तन) नहीं बना हो - उस स्थिति में इस स्तोत्र द्वारा संतुलन लाया जा सकता है।
वे भक्त जो भगवान शिव- पार्वती की भक्ति करना चाहते हों, या शिव- पार्वती- एकत्व (शिवशक्ति एकता) की अनुभूति करना चाहते हों।
विद्यार्थी, व्यवसायी, गृह- परिवार में सक्रिय लोग - जो अपनी ऊर्जा और मानसिक स्थिति को बलवान बनाना चाहते हों - इस स्तोत्र का नियमित पाठ कर लाभ उठा सकते हैं।
5. व्याख्या
“अर्धनारीश्वर” का शाब्दिक अर्थ है - “अर्ध” = आधा, “नारी” = स्त्री, “ईश्वर” = परम पुरुष/देवता। अर्थात् देव ऐसा स्वरूप जिसमें पुरुष और नारी, शिव और शक्ति एक साथ हैं।
स्तोत्र में विभिन्न पदों द्वारा यह दृश्य प्रस्तुत किया गया है - जैसे कि पार्वती के शरीर की सुन्दरता, शिव की जटाधरता, दोनों के आभूषण- वेश, वस्त्र- भूषण, आदि। उदाहरणस्वरूप:
“अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तटित्प्रभाताम्रजटाधराय”इसका मूल भाव यह है कि ब्रह्मांड- सृष्टि में ऊर्जा- शक्ति एवं चेतना- पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं। जैसे शिव लिंग से परे चेतना हैं, और शक्ति रूप में पार्वती हैं - दोनों मिलकर संपूर्णता प्राप्त करते हैं।
इस स्तोत्र के अंत में “यः पठेच्छृणुयाद्वापि… प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं…” जैसे फल- सूत्र हैं, जो पाठक को आश्वस्त करते हैं कि नियमित भक्तिभाव से पाठ करने पर शुभ- फल मिलता है।
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निष्कर्ष:
यदि आप अपने जीवन में शक्ति- स्थिरता, ऊर्जा- वृद्धि, आत्म- संतुलन एवं आध्यात्मिक जागृति चाहते हैं और विशेष रूप से यदि आपके ज्योतिषीय दृष्टि से चंद्र या मंगल प्रभावित हों, तो इस “अर्धनारीश्वर अष्टकम्” का नियमित पाठ एक सार्थक उपाय बन सकता है।
भक्ति- भाव से इसे पढ़ें, अर्थ को समझें, मन को शिव- शक्ति के समेकित स्वरूप में लगाएँ - और उसके बाद फलस्वरूप अपने जीवन- मार्ग में सकारात्मक बदलाव की आशा रखें।