अच्युताष्टकम् स्तोत्र अच्युताष्टकम् भगवान् विष्णु / कृष्ण की अचूक महिमा का स्तुतिपाठ है। अगर आपकी कुंडली में गुरु (बृहस्पति) या शनि कमजोर हैं अथवा जीवन में संतान, धन या सफलता के मार्ग में बाधाएँ हैं, तो इस स्तोत्र का नियमित पाठ लाभकारी माना गया है।
Achyutashtakam Shlok praises the invincible glory of Lord Vishnu. If Jupiter or Saturn is weak in your horoscope and you face obstacles in wealth, children, or success, reciting this shloka regularly brings great benefits. Available Free PDF.
यह स्तोत्र “श्रीमत् आदि शंकराचार्य” द्वारा रचित माना जाता है। उनके द्वारा अष्ट स्तोत्रों (अष्टकम्) में भगवान की विभिन्न नाम- रूपों में वंदना की गई है।
इस स्तोत्र में भगवान विष्णु के विभिन्न नाम - रूपों और लीलाओं का वर्णन है। उदाहरणस्वरूप:
“अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम्” - यहाँ “अच्युत”, “केशव”, “राम”, “नारायण”, “दामोदर”, “वासुदेव”, “हरि” आदि नामों से विष्णु / कृष्ण जी को श्रद्धा दी गई है।
आगे के स्तोत्रों में भी “श्रीधरं माधवं”, “गोपीकावल्लभं”, “जानकीनायकं रामचन्द्रं” आदि नाम- रूपों का उल्लेख मिलता है।
इस प्रकार यह स्तोत्र मुख्य रूप से भगवान विष्णु / कृष्ण / राम के रूप में पवित्र समर्पण- स्तुति है।
अच्युताष्टकम् स्तोत्र के नियमित पाठ से मन को शांति, एकाग्रता और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
विशेष रूप से कहा गया है कि जिन लोगों को जीवन में रोक- टोक, असफलता, नौकरी- व्यवसाय में अड़चन, धन की कमी आदि का सामना है, उन्हें अच्युताष्टकम् स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना गया है।
ज्योतिषीय दृष्टि से - यदि कुंडली में गुरु या शनि आदि ग्रह कमजोर हों, या जीवन -धारा में बाधाएँ हों, तो इस तरह के भक्तिप्रवण पाठ को उपाय के रूप में देखा जाता है। (अवलोकनार्थ, लेखों में “धन, स्वास्थ्य, सफलता” से जुड़े लाभ उल्लेखित हैं)
अर्थात् यह स्तोत्र वास्तु- ज्योतिष की दृष्टि से आध्यात्मिक उपचार की श्रेणी में आता है - जहाँ गुरु- शनि दोष, मनोबल की कमी, मानसिक अशांति आदि में पाठ लाभ- प्रद माना गया है।
For Full Achyutashtakam Shlok | अच्युताष्टकम् स्तोत्र Download Free PDF - Asttrolok.com
इसका पाठ उन लोगों के लिए है जिन्होंने बहुत प्रयास किया पर सफलता नहीं मिली और व्यवसाय, नौकरी, अध्ययन आदि में असमर्थता का अनुभव कर रहे हैं।
उनके लिए जिनकी कुंडली में गुरु या शनि कमजोर हों, या जीवन- मार्ग में बाधाएँ हों - जीवन में संतान, धन, काम जैसी इच्छाएँ पूरी न हो रही हों।
अध्ययनरत विद्यार्थी जिन्हें परीक्षा में सफलता चाहिए।
शरीर- स्वास्थ्य, मानसिक तनाव, स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोग भी अच्युताष्टकम् स्तोत्र द्वारा शांति एवं सकारात्मक परिवर्तन की आशा कर सकते हैं।
आम रूप से - जो व्यक्ति भगवान विष्णु / कृष्ण / राम की भक्ति करना चाहता हो, अपनी आत्म- शक्ति और जीवन- मार्ग को सकारात्मक बनाना चाहता हो, वह इस स्तोत्र का नियमित पाठ करे।
“अच्युत” का अर्थ है - जो कभी नहीं घटे, जो अक्षय है। अर्थात् भगवान का अविनाशी स्वरूप।
इस स्तोत्र में पहले स्तोत्र में विभिन्न नामों से भगवान को सम्बोधित किया गया है:
“अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम्।”
यह दर्शाता है कि भगवान एक हैं लेकिन उनके अनेक रूप, नाम और लीला हैं।
अन्य स्तोत्रों में भगवान की लीला- संबंधी नामावली दी गई है - जैसे गोपीकावल्लभ, कंसविध्वंसिन्, द्वारकानायक इत्यादि।
अन्तिम स्तोत्र में कहा गया है कि
“अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदं… तस्य वश्यो हरिः जायते सत्वरम्” - अर्थात जो इस अष्टक- पाठ को प्रेमपूर्वक प्रतिदिन करता है, उसके ऊपर शीघ्र हरि का वशीभूत (अनुग्रह) होने का वादा है।
इसका मूल भाव है - भक्तिपूर्वक भगवान के नाम- रूपों का स्मरण, भगवान की अनंत लीला- गुणों का चिंतन और जीवन- मार्ग में भगवान की कृपा- अनुग्रह प्राप्त करना।
यदि आप अपने जीवन में भक्ति, शांति, सफलता और बाधा- मुक्ति चाहते हैं और विशेष रूप से यदि आपके ज्योतिष में गुरु- शनि ग्रह प्रभावित हैं तो आदि शंकराचार्य द्वारा रचित “अच्युताष्टकम्” का नियमित पाठ एक सशक्त उपाय हो सकता है।
भक्ति- भाव से इस स्तोत्र का पाठ करें, अर्थ समझें, मन को भगवान् की ओर लगाएँ, और उसके बाद फलस्वरूप जीवन- परिस्थितियों में सकारात्मक बदलाव की आशा रखें।